श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विवाद पर नारायणी सेना और रामानुज का विरोध

श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विवाद

श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विवाद पर नारायणी सेना और रामानुज का विरोध

वृंदावन स्थित प्रसिद्ध श्री ठाकुर बांके बिहारी मंदिर के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित कॉरिडोर योजना को लेकर इन दिनों प्रदेश की राजनीति और सामाजिक माहौल गरमा गया है। “श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विवाद” अब एक ऐसा मुद्दा बन चुका है जिसमें भावनाएं, आस्था, प्रशासनिक निर्णय और कानूनी प्रक्रिया सभी एक साथ उलझ गए हैं।

📍 श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विवाद में बढ़ता विरोध

स्थानीय समाज और मंदिर सेवायतों ने श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर पर क्रमिक अनशन शुरू किया है। उनका आरोप है कि सरकार कॉरिडोर के नाम पर मंदिर क्षेत्र का अधिग्रहण कर आस्था से खिलवाड़ कर रही है।

👥 नारायणी सेना का बयान श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर पर

नारायणी सेना के पदाधिकारियों ने आंदोलन स्थल पर पहुंचकर कहा कि यह विकास नहीं बल्कि संस्कृति का विनाश है। उन्होंने मांग की कि सरकार वृंदावन में हरिद्वार की तर्ज पर यमुना किनारे पक्के घाट, तुलसी वन, पार्किंग और प्रतीक्षालय बनाए — न कि मंदिरों का अधिग्रहण करे।

कॉरिडोर का उद्देश्य:

सरकार का दावा है कि कॉरिडोर बनने से श्रद्धालुओं को भीड़भाड़ से राहत मिलेगी और मंदिर परिसर में सुव्यवस्थित दर्शन की सुविधा मिलेगी। हजारों की भीड़ को नियंत्रित करना और श्रद्धालुओं को सुरक्षा देना प्राथमिक उद्देश्य है।


श्रद्धालुओं की समस्याएं

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पंडित सोहन मिश्र ने कहा कि सरकार बांके बिहारी मंदिर विवाद में श्रद्धालुओं की वास्तविक समस्याओं — जैसे जाम, गंदगी, बंदरों का उत्पात और शौचालय की कमी — को नजरअंदाज कर रही है।


👤 आचार्य रामानुज का सुझाव

आचार्य रामानुज ने बांकेबिहारी मंदिर विवाद पर कहा:

“कॉरिडोर के नाम पर मंदिरों का अधिग्रहण गलत है। सरकार को सप्त देवालयों और यमुना के घाटों का संरक्षण करना चाहिए।”

🧾 निष्कर्ष

बांकेबिहारी मंदिर विवाद केवल एक विकास योजना का मुद्दा नहीं, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा प्रश्न है। सरकार को चाहिए कि वह संवाद के माध्यम से समाधान निकाले और श्रद्धालुओं की भावनाओं का सम्मान करे।

गोस्वामी समाज क्यों कर रहा है विरोध?

  1. सेवा का अधिकार: मंदिर की सेवा पूजा गोस्वामी समाज सदियों से करता आया है। उनका मानना है कि मंदिर उनकी निजी संपत्ति है और सरकारी हस्तक्षेप उनके परंपरागत अधिकारों का हनन है।
  2. धार्मिक व्यवस्था में हस्तक्षेप: सरकार द्वारा कॉरिडोर योजना के लिए ट्रस्ट का गठन और मंदिर से जुड़े क्षेत्रों का अधिग्रहण गोस्वामी समाज को स्वीकार नहीं है।
  3. संस्कृति का क्षरण: गोस्वामी समाज और स्थानीय लोग मानते हैं कि कॉरिडोर निर्माण से मंदिर की पारंपरिकता, गलियों की पवित्रता और वृंदावन की आध्यात्मिक आभा पर प्रभाव पड़ेगा।
  4. पूर्व हादसा और कोर्ट रिपोर्ट: अगस्त 2022 में मंगला आरती के समय हुई भगदड़ में दो लोगों की मृत्यु के बाद इस योजना को गति मिली। हाई कोर्ट की सिफारिशों के बाद सरकार ने योजना तैयार की, लेकिन गोस्वामी समाज को यह आरोप है कि उनके सुझावों को नजरअंदाज किया गया।

सरकार का पक्ष:

सरकार का कहना है कि किसी की निजी संपत्ति नहीं छीनी जाएगी। दुकान के बदले दुकान, मकान के बदले मकान और उचित मुआवजा मिलेगा।

  • कुल 276 दुकानों व मकानों का अधिग्रहण प्रस्तावित है।
  • योजना का क्षेत्रफल 5.65 एकड़ होगा और लगभग 10,000 श्रद्धालु एक साथ दर्शन कर सकेंगे।
  • कॉरिडोर को दो भागों में विभाजित कर परिक्रमा मार्ग और विद्यापीठ से जोड़ा जाएगा।

कॉरिडोर की सुविधाएं:

  • प्रतीक्षालय, चिकित्सा केंद्र, वीआईपी लाउंज, जूता घर, सामान रखने की जगह आदि।
  • यमुना नदी पर सस्पेंशन पुल का भी प्रस्ताव है, जिससे यातायात और पहुंच सरल होगी।
  • राधारमण व मदन मोहन जैसे प्राचीन मंदिरों तक श्रद्धालुओं की पहुंच भी सुगम होगी।

स्थानीय समर्थन और विरोध:

हालांकि गोस्वामी समाज विरोध कर रहा है, लेकिन वृंदावन के कई सामाजिक संगठन और संत समुदाय सरकार की इस योजना का समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह व्यवस्था से जुड़ा निर्णय है, जिससे हजारों लोगों की जान और श्रद्धा दोनों सुरक्षित रहेंगी।

निष्कर्ष:

बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विवाद केवल एक विकास परियोजना नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और प्रशासनिक सोच के टकराव का उदाहरण है। सरकार को चाहिए कि संवाद और सहमति के आधार पर इस योजना को आगे बढ़ाए ताकि वृंदावन की आध्यात्मिकता भी सुरक्षित रहे और श्रद्धालुओं को भी बेहतर सुविधाएं मिलें।

श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर विवाद एक बार फिर चर्चा में है। वृंदावन में प्रस्तावित श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर को लेकर स्थानीय लोगों और गोस्वामी समाज के विरोध के बीच अब नारायणी सेना भी खुलकर सामने आई है। संगठन ने आंदोलन को समर्थन देते हुए इसे आस्था और संस्कृति के विरुद्ध बताया।


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